পোস্টগুলি

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| হিরণ্যগর্ভসূক্ত || ঋগ্বেদ ১০ মন্ডল ১২১ সূক্ত।

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✅ हिरण्यगर्भा सूक्तं / हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्॥ स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ १ ॥ अर्थ- सृष्टि के आदि में था हिरण्यगर्भ ही केवल जो सभी प्राणियों का प्रकट अधीश्वर था। वही धारण करता था पृथिवी और अंतरिक्ष आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें| य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः॥ यस्य छायामृतम् यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ २ ॥ अर्थ- आत्मा और देह का प्रदायक है वही जिसके अनुशासन में प्राणी और देवता सभी रहते हैं मृत्यु और   अमरता जिसकी छाया प्रतिबिम्ब हैं। आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें | यः प्राणतो निमिषतो महित्वै क इद्राजा जगतो बभूव॥ यः ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ ३ ॥ अर्थ- प्राणवान् और पलकधारियों का महिमा से अपनी एक ही है राजा जो संपूर्ण धरती का स्वामी है जो  द्विपद और चतुष्पद जीवों का आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से ।- हिरण्यगर्भा सूक्तं  यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः॥ यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय ...

মনুসংহিতা ও নারী

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=[] মনুসংহিতা ও নারী []= নমস্কার সকল অমৃতের সন্তানগণ 🕉️🙏। নারী সর্বদা সম্মানিত এবং মর্যাদার আসনে আসীন। পৃথিবীতে যে জাতি নারীকে দিয়েছে সর্বোচ্চ মর্যাদা সে জাতি তৈরি করেছে সফলতা ও উন্নতির অগ্নিপথ। কারণ অগ্নিকন্যারা সে সফলতার অগ্নিরথের চালক। সেজন্য, পবিত্র বেদ নারীকে বলা হয়েছে,  "উপোপ মে পরা মৃশ মা মে দভ্রাণি মন্যথাঃ। সর্বাহমস্মি রোমশা গন্ধারীণামিবাবিকা"।। - ঋগ্বেদ ১/১২৬/৭  অর্থাৎ, রাজা যেমন রাজ্যের শাসনকর্তা হয়, রাণী তেমনি রাজ্যের রক্ষাকারিণী হয়, নারী সর্বপ্রকার গুণবতী হয়, নারীর কর্মক্ষমতাকে ছোট করে দেখো না, তার গুণ ও কর্মকে বিবেচনায় নাও। পবিত্র বেদ সনাতন ধর্ম শাস্ত্রের মধ্যে প্রধান ধর্মগ্রন্থ। সকল শাস্ত্র সিদ্ধান্ত নেওয়ার জন্য পবিত্র বেদ মান্যতা প্রয়োজন হয়। নারী প্রতি শ্রেষ্ঠ সম্মান এবং মর্যাদা পবিত্র বেদ এ উল্লেখিত রয়েছে। কিন্তু পবিত্র বেদ ব্যতীত আরেকটি গ্রন্থে সর্ববিজয়া, জ্ঞানের ধারক নারীকে নিয়ে রয়েছে বিশদ আলোচনা। সে অসাধারণ ন্যায়শাস্ত্রের নাম মনুসংহিতা। বর্তমান সময়ে মনুস্মৃতি নিয়ে জনমনে রয়েছে সংশয়, দ্বিধা এবং দ্বন্দ্ব। কিন্তু এসকল ধারণা শুধুমাত্র অজ্ঞানতা থেক...

সনাতন ধর্ম ও জন্মান্তরবাদ

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 জন্মান্তরবাদ  ➡️ সনাতন ধর্ম তাহাই মান্যতা দেয় যা সত্য এবং যথোপযুক্ত। অযৌক্তিক কিংবা বিচারবিহীন ভাবে কোনো কিছু অধ্যয়ন, গ্রহণ, পালন এর উপদেশ সনাতন শাস্ত্র সমূহে নেই। একমাত্র সনাতনধর্মে ঈশ্বর মনুষ্যের উদ্দেশ্যে বিচার-বিশ্লেষণ পূর্বক সত্যকে গ্রহণের উপদেশ প্রদান করেছেন। অথর্ববেদে সেজন্য বলা হয়েছে,  प॒दोर॑स्या अधि॒ष्ठाना॑द्वि॒क्लिन्दु॒र्नाम॑ विन्दति। अ॑नाम॒नात्सं शी॑र्यन्ते॒ या मुखे॑नोप॒जिघ्र॑ति ॥ =[]অথর্ববেদ ১২।৪।৫[]= “যিনি বেদবাণীকে যথার্থ বিচারপূর্বক গ্রহণ করেন তিনিই সুখ ভোগ করেন আর যিনি তার বিপরীত কাজ করেন তিনি দুঃখ ভোগ করেন।”  ऊ॒र्जे त्वा॒ बला॑य॒ त्वौज॑से॒ सह॑से त्वा। अ॑भि॒भूया॑य त्वा राष्ट्र॒भृत्या॑य॒ पर्यू॑हामि श॒तशा॑रदाय ॥ =[]অথর্ববেদ ১৯।৩৭।৩[]= “ঈশ্বরকে তর্ক দ্বারা নিশ্চিতভাবে নির্ণয় করেই গ্রহণ করো।”  ➡️ সনাতন ধর্মে ত্রৈতবাদ, কর্মফল এর মতো জন্মান্তরবাদ বা পুনর্জন্মের উল্লেখ রয়েছে। অর্থাৎ, প্রত্যেক ব্যক্তি তার স্বীয় কর্মফল ভোগের জন্য পুনরায় দেহ ধারণ করাকে পুনর্জন্ম বলা হয়। বর্তমান সময়ে জন্মান্তরবাদ নিয়ে কিছু সংশয় এর উত্থান ঘটেছে। যা সাধারণ মনুষ্যে...